बिहार के लिए यह कोई नई बात नहीं है। लालू जी भी अपने गरीब रैला में यह कारनामा दिखा चुके है। बस नई है,तो नीतीश जी के सुशासन का यह नया नमूना। यह हमारे बिहार के नीति निर्माता है। हमारे भाग्य-विधाता है। खैर, अगले दिन विधायक जी ने माफ़ी मांगी। कह रहे थे फाल्गुन का महीना है,ग़लती हो गई। बुरा न मानो होली है। जीरादेई का यह विधायक अपनी माफ़ी नामा में बार बार राजेंद्र बाबू को राष्ट्रपिता कह रहा था। जब पत्रकार बंधुओ ने बतलाया की राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति थे ,तब उन्होंने का हाँ वही तो है। ऐसा है हमारे सत्ताशाली राजनेताओ का चाल चरित्र और चेहरा।
वैसे भी आजकल दलित प्रेम का नया चलन चला है। इस प्रेम प्रदर्शन में मारामारी है। कौन कितना प्रेम प्रदर्शित करता है। राहुल भैया का दलित प्रेम तो जग जाहिर है। गडकरी साहब को भी इंदौर में दलित प्रेम जागृत हुआ । नीतीश जी को इन सबों से ज्यादा दलित प्रेम रोग है। उन्होंने महादलित की नई श्रेणी ही बना डाली । सर पे चुनाव जो है। इन सबों से दलितों का कितना भला हो रहा है ,यह दलित भी जानते है और हम सब भी। दलितों का हाल किसी से छिपा नहीं है। सिर्फ उनके नाम पर राजनीति हो रही है। वोटबैंक की राजनीति । हमें ऐसे लोगों से निपटाना होगा। तरीका स्वयं खोजने की कोशिश करे।