घृणा अपराध और भीड़ तंत्र की चुनौती


गाँधी जी कहा करते थे अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं. लेकिन हम  घृणा के कारण ही अपराधी बनते जा रहे है. हम एक ऐसे समाज की ओर अग्रसर है जहाँ नफरत या घृणा अपराध तेजी से बढ़ रहा है. इससे सामाजिक ताना–बाना कमजोर हो रहा है और आपसी सौहाद्र भी प्रभावित हो रहा है.

क्या है घृणा अपराध
जब कोई आपराधिक कृत्य समूह विशेष के सदस्य के प्रति नफरत या घृणा  के कारण किया जाता है तो उसे घृणा अपराध कहते है. घृणा अपराध के दो पक्ष है. पहला कोई भी कृत्य आपराधिक  कानून  के अंतर्गत अपराध माना जाये और दूसरा वह अपराध समूह विशेष के प्रति पूर्वाग्रह से प्रेरित हो. पूर्वाग्रह से प्रेरित होने से अभिप्राय समूह विशेष  के प्रति पूर्वकल्पित नकारात्मक राय, रुढ़िवादी धारणा, असहिष्णुता या नफरत रखना है. समूह की पहचान सामान्य विशेषता, जैसे कि वंश, जातीयता, भाषा, धर्म, राष्ट्रीयता, यौन अभिविन्यास, लिंग या किसी अन्य मौलिक विशेषता  के आधार पर की जाती  है.
घृणा अपराधों में धमकि, संपत्ति की क्षति, हमला, हत्या या पूर्वाग्रह प्रेरणा के साथ प्रतिबद्ध कोई अन्य आपराधिक कृत्य शामिल हो सकते हैं जैसे मौखिक अपमान, अपमानजनक भित्तिचित्र या पत्र आदि. घृणा अपराध केवल विशिष्ट समूहों के व्यक्तियों को प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि समूह विशेष के प्रतीकों या चिन्हों पर भी हमला घृणा अपराध के अंतर्गत आते है. मसलन खास  सामुदायिक केंद्रों या पूजा स्थलों पर हमला. इस प्रकार घृणा अपराध का व्यापक आयाम है जिसमे वो तमाम आपराधिक कृत्य शामिल हैं जो नफरत के आधार पर किये जाते हों. घृणा अपराध केवल प्रत्यक्षा लक्ष्य को नहीं बल्कि समूह विशेष के  हर सदस्य को प्रभावित  करता है. पूर्वाग्रह से प्रेरित अपराध एक लक्षित समूह के सदस्यों के बीच असंतोष का एक व्यापक लहर पैदा कर सकता है. हिंसक घृणा अपराध जंगल में लगी आग की तरह फैलता है. यह पूरे समुदाय में आतंक और घृणा का भाव पैदा करता करता है. मनोवैज्ञानिक प्रभावों के  अलावा यह  न केवल पीड़ित व्यक्ति बल्कि  समूह के अन्य सदस्यों में भी बदले की भावना तेजी से  पैदा कर सकता है. यही कारण  है कि घृणा अपराध सामान्य अपराधों से ज्यादा खतरनाक और दूरगामी प्रभाव वाला है .
वैसे तो घृणा अपराध का इतिहास काफी पुराना है लेकिन 80 के दशक में इस शब्द का चलन अमरीका में तेजी से होने लगा. आज भारत सहित दुनिया के कई देशों में घृणा अपराध में तेजी से इजाफा हुआ है. भारत में घृणा अपराध का कोई विस्तृत आँकड़ा अधिकारिक रूप से मौजूद नहीं है.भारत के क्राइम रिपोर्टिंग में अमरीका और ब्रिटेन की तरह हेट क्राइम की कोई अलग श्रेणी नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) घृणा अपराध  की अलग से कोई जानकारी  नहीं  देती है. हालाँकि  एनसीआरबी  धर्म, जाति  जन्म स्थान आदि  (आईपीसी की धारा १५३क और १५३ख़) के आधार पर विभिन्न समूहों के  बीच शत्रुता को बढ़ावा देने  वाले अपराधों से सम्बंधित आंकड़ों का रख-रखाव करता है. इसके विपरीत अमरीका का  फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई) हेट क्राइम के आंकड़े १९९२ से ही सार्वजानिक रूप से प्रकाशित करता है.

भारत में घृणा अपराध
भारत में घृणा अपराध का स्तर अज्ञात है, क्योंकि कानून सामान्यतः हेट क्राइम को विशेष अपराध के रूप में नहीं पहचानता है। पुलिस भी घृणा अपराध को सामान्य अपराध की तरह ही देखती है. कई संगठनों ने हेट क्राइम के आंकड़ो को इकट्ठा करने का  काम किया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की हाल्ट द  हेट वेबसाइट ने साल 2017  घृणा अपराध की २०२ घटनाओं की सुचिबद्ध किया है जिसमें कथित रूप से दलितों के विरुद्ध 141 घटनाएं तथा मुस्लिम के विरुद्ध 44 घटनाओं का जिक्र किया है.  69 घटनाएं ऐसी हैं जिनमें कम से कम 146 लोग मारे गए थे। 35 ऐसी घटनाएं देखी गई थीं, जिसमें महिलाओं या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध लैंगिक हिंसा हुई थी। साल 2016 में 237 कथित घृणा अपराध दर्ज किए गए थे। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात में सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गयी। (http://haltthehate.amnesty.org)

एनसीआरबी के मुताबिक विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने वाले अपराधों में विगत तीन वर्षों में ४१ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है. वर्ष २०१४ में ऐसे ३३६ मामले दर्ज किये गए जो कि २०१५ में बढ़ कर ४२४ और २०१६ में ४७५  हो गए.  उत्तर  प्रदेश में वर्ष २०१४ में ऐसे २६ मामले दर्ज की गए थे जो २०१६ में बढ़ कर ११६ हो गए, पश्चिम बंगाल में २०१४ में २०  मामले दर्ज किये गए जो कि २०१६ में बढ कर ५3 हो गए. वही उत्तराखंड में भी इस दौरान आपसी शत्रुता के मामलों में पांच गुना से अधिक वृद्धि हुई. बिहार में २०१४ में आपसी शत्रुता का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था जबकि २०१६ में ऐसे ८ मामले दर्ज किये गए.

विगत कुछ वर्षों में गाय के नाम पर लोगों को हत्याएं हुई है. भीड़ ने लोगों की हत्या कर दी. इंडिया स्पेंड वेबसाइट के मुताबिक २०१० से २०१७ के  बीच में गाय से सम्बंधित हेट क्राइम की ७८ घटनाएँ हुई जिसमे २९ लोग मारे गए. इन २९ लोगों में २५ मुस्लिम थे. इस वेबसाइट के अनुसार इस तरह के मामलों की ९७ प्रतिशत घटनाएँ साल २०१४ से २०१७ के बीच हुई जबकि २०१० और २०११ में ऐसी कोई घटना दर्ज नहीं की गई. हालाँकि २०१२ और २०१३ में एक-एक घटनाएँ प्रकाश में आई थी. 

दुनिया नफरत की गिरफ्त में

दुनिया के दूसरे देशों  में  भी हेट क्राइम  तेजी से बढ़ रहा है. अमरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे तमाम  विकसित दशों में हेट क्राइम की घटना बढ़ रही है. एफबीआई हर साल हेट क्राइम के आंकड़े जारी करती है. साल २०१६ में अमरीका में हेट क्राइम के ६,१२१ मामले दर्ज किये गए जो की २०१५ से 5 प्रतिशत अधिक था.  इनमें ५८ प्रतिशत मामले नस्ल, वंश या जाति से सम्बंधित थे, जबकि २१ प्रतिशत धार्मिक हिंसा और 18 प्रतिशत लैंगिक हिंसा से सम्बंधित मामले थे. धार्मिक हिंसा के सबसे अधिक शिकार यहूदी और मुसलमान रहे. (https://ucr.fbi.gov/hate-crime/2016) ब्रिटेन का गृह विभाग भी साल २०११-१२ से हेट क्राइम के आंकडे  हर साल जारी करता  है. ब्रिटेन में साल २०१६-17 में हेट  क्राइम के ८०,३९३ मामले दर्ज किये गए जो की २०१५-१६ से २९ प्रतिशत अधिक है.  इंग्लैंड और वेल्स में सबसे अधिक हेट क्राइम की घटनाएँ हुई.  इनमे सबसे अधिक ७८ प्रतिशत मामले  नस्ल  से सम्बंधित थे. यहाँ विकलांगों, ट्रांसजेंडरों के साथ-साथ समलैंगिकों पर भी हमले हुए है. (http://www.bbc.com/news/uk-41648865)  फ्रांस भी हेट क्राइम के आंकडे जारी करता है.  यहाँ हेट क्राइम के २०१६ में १८३५ मामले दर्ज हुए थे जबकि २०१५ में १७९० मामले ही दर्ज किये गए थे. (http://hatecrime.osce.org/france).  पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका सहित भारत के तमाम पडोसी देशों में घृणा अपराध में मामले बढ़ रहे है. खासकर धार्मिक अल्प संख्यकों पर हमले तेज हुए है. हाल ही में श्रीलंका में मुस्लिमों पर  हुए हमले के बाद आपातकाल घोषित कर दिया गया था. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का नस्लीय नरसंहार का दौर अभी भी जारी है. पिछले साल अगस्त में अराकान में हुई हिंसा के बाद एक महीने के अन्दर २५ अगस्त २०१७  से २५ सितम्बर २०१७ के बीच ९००० से अधिक रोहिंग्या मुसलमान मारे गरे और ७ लाख से अधिक लोग पलायन कर गए (http://www.msf.org). ह्यूमन राइट्स वॉच की सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण से सामने आया कि अगस्त 2017 के बाद एक महीने में म्यांमार में कम से कम 288 गांव जला दिए गए.
  
घृणा अपराध और भारतीय कानून

भारतीय दंड संहिता घृणा अपराध की कोई स्वतंत्र परिभाषा नहीं देती और न ही इससे निपटने का कोई अलग से कानून है. घृणा अपराध को सामान्य अपराधों की श्रेणी में रखते हैं  और फिर उसी तरह निपटते भी हैं. हालाँकि भारतीय दंड सहिता की धारा २९५ से २९८ किसी वर्ग के धर्म का अपमान  करने , धार्मिक भावना आहत करने आदि  को  प्रतिबंधित करता है और  धारा १५३ धार्मिक आधार पर नफरत फ़ैलाने को निषेध करती है. गौरतलब है कि इन सभी  धाराओं में सात साल से कम की सजा है जिसमे आसानी से जमानत मिल जाती  है. इन  धाराओं के अतिरिक्त अत्याचार निवारण अधिनियम और नागरिक सुरक्षा अधिकार जैसे कानून है जो कि  घृणा अपराध  से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

घृणा अपराध और भीड़तंत्र  की चुनौती का सामना करने के लिए  भारत में कोई  स्वतंत्र कानून नहीं है. लोकसभा में २५ अगस्त २०१७ को एक तारांकित  प्रश्न के जवाब में गृह राज्य मंत्री हंसराज  अहीर  ने कहा था कि  फ़िलहाल भीड़तंत्र से निपटने के लिए कोई  अलग कानून बनाने का प्रस्ताव नहीं है. घृणा अपराध असहिष्णुता का सबसे गंभीर प्रदर्शन है. भारत में जिस तरह से यह अपराध बढ़ रहा है, सामाजिक और राजनैतिक प्रयासों के साथ-साथ क़ानूनी प्रयास करने की भी  जरुरत है. हमें घृणा अपराध को क़ानूनी रूप से परिभाषित करने और उसकी  आधिकारिक रिपोर्टिंग करने की जरुरत है. तदनुसार क़ानूनी  प्रावधान लाने होंगे.  पुलिस कई बार इस तरह के मामलों में धार्मिक नफ़रत और आपसी शत्रुता की धारा नहीं लगाती है, जैसा कि मोहम्मद अखलाक की हत्या के केस में हुआ था. इसलिए घृणा अपराध की स्वतंत्र क़ानूनी व्याख्या आवश्यक है.