कथा हरिद्वार से .

हरिद्वार में महाकुम्भ पर महा जमघट लगा हुआ है। देश विदेश से सैलानी भक्त आ रहे है। वहां एक उत्सव का माहौल बना हुआ है। मेरे जान पहचान के अधिकांश लोग हरिद्वार की पवित्र गंगा में डुबकीलगा चुके है।बस,मुझसे भी नहीं रहा गया और चल पड़ा गंगानहाने ।इस गर्मी मेंभी सुबह की ठंढ कंपा कर रख दी थी। खैर,श्रद्धा के साथ मैंने भी डुबकी लगाई और निकल पड़ा घूमने।

नज़ारा कुछ अलग सा लग रहा था। एक ओर गाँवदेहात के लोग माथे पर मोटरी लिए घूमते नजर आ रहे थे। वहीँ दूसरी ओर देश -विदेश से कथित संभ्रांत लोग भी आये थे। पर यहाँ भी संख्या में माथे पर गठरी लिए लोग ही ज्यादा दिख रहे थे। लग रहा था हरि के द्वार में भी गरीबी और अमीरी मौजूद है।

पूरेशहर में साधु-संतों के बड़े बड़े होर्डिंग ,बैनर , पोस्टर आदि लगे हुए थे। ये होर्डिंग ,बैनर भी बदले बाज़ार की तसवीर बयान कर रही थी। इन में से कुछ पर सन्देश भी अंग्रेजी में लिखे हुए थे। अपने अपने वेबसाइट का प्रचार था। साथ ही साथ सन्देश भी परंपरागत न होकर आधुनिक थे । मसलन हरि सुमिरन के बजाए स्टॉपएड्स ,कन्ट्रोल ग्लोबलवार्मिंग जैसे सन्देश लिखे हुए थे । आखिर,देववाणी संस्कृत को छोड़ अब ये लोग अंग्रेजी पर क्यों उतर आये।प्रचार के पारंपरिक तरीकों के बजाए अब वे सारे तरीके अपनाये जाते है, जो एक व्यवसाय करने वाली कंपनी अपनाती है। उपभोगतावाद के सुरसा ने प्रायः साधु-संतों को अपने आगोश में ले रखा है। गृहस्थों को त्याग का उपदेश देने वाले ऐसे लोग खुद ही उपयोग और उपभोग में अंतर भूल गए।

स्पष्ट है, यह सन्देश बहुसंख्यक तीर्थ यात्रियो के लिए नहीं था। उन्हें तो अंग्रेजी आती तक नहीं । देश के कुछ संभ्रांत लोगों तथा विदेशियों को आकर्षित करने का यह एक प्रयास है। उदारीकरण के इस दौर में जब धर्म व्यवसाय का अंग बन गया है, साधु भी कंपनी के सी ई ओ के तरह काम कर रहे है। अब वे राजनीति करतेहै, चैनलचलाते है , दवाइयों की कंपनीचलाते है,साबुन बनाते है, किताबें छपवाते है, खेती करवाते है, ड्रिंक्स तैयार करवाते है आदि आदि । जिस तरीके से राजनीति और मीडिया से बड़े बड़े धर्माचार्यों का जुडाव हो रहा है, आने वाला समयऔर भयावह होने वाला है।


पर मै तो हरि के द्वार आया था। सोंचा ऐसे विश्लेषणों से क्या फायद? मनही मन ईश्वर से प्रार्थना किया पहलेऐसे साधुओं को सदबुद्धि देना फिर उनके भक्तों को।