लापतागंज से रनिंग कमेंट्री

वैसे तो लापतागंज का पता सिर्फ शरद जोशी को ही हैलेकिन सब टी. वी. पर दिखाया जाने वाला यह धारावाहिक काफी लोकप्रिय हो गया हैपिछले दिनों इस धारावाहिक में कबड्डी के खेल पर आधारित कुछ कहानियों को दर्शाया गयायह काफी प्रासंगिक लग रहा थाइस में दिखाया गया की किस तरह से राष्ट्रीय कबड्डी टीम के साथबरताव किया जा रहा हैउन खिलाड़ियों के साथ खिलाड़ी जैसा नहीं बल्कि भिखारी जैसा बरताव किया जा रहा हैउनको कोई स्पोंसर नहीं मिलने पर खाने के नाम पर ब्रेड और केला मिल रहा है। दूसरी तरफ खिलाड़ी भी टीम और देश के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए खेल रहे है

वस्तुतः यह हाल भारत में कई खेलों के साथ हैहाल ही में हॉकी की कहानी सबों ने सुनी हैकिस तरह से हॉकी टीम को पैसा के लिए गिडगिडाना पराऔर बाद में किस तरह से हमारे देश के खेल मसीहा लोग सामने आयेयह हाल हमारे उस खेल का है, जिसने कई बार देश में टीम के रूप में ओलम्पिक जीत कर आया हैयह भारत की खेल भावना की दुर्दशा हैवैंकुवर में शीतकालीन ओलम्पिक चल रहा हैवहाँ हमारे खिलाड़ियों की हाल यह थी कि उनके पास उचित ड्रेस तक नहीं थाबाद में वहाँ के रहने वाले खेल प्रेमियों ने उनकी मदद कि

सच तो यह है कि खेल , खेल रह कर व्यापार हो गया हैखेलों को जब तक कोई स्पोंसर नहीं मिलता खेल मार्केट में टिक नही पताइसके लिए क्रिकेट को दोष नहीं दे सकतेहमें अपने दूसरे अन्य पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहित करना पड़ेगाआज गाँव -गाँव में ऐसे कई प्रतिभाएं है ,जिनका पोषण कर हम अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैलेकिन इसके लिए खेल के बाजार को गाँव तक जाना होगायह कार्य सरकार और जनता को मिल कर करना होगाऔर कुछेक खेलों के बजाये हमें कई विकल्पों पर सोचना होगा