कब्जे की कवायद करता ड्रैगन



चीन दुनिया के सबसे ताकतवर देश के रूप में उभर रहा है। वह सामरिक, आर्थिक और रणनीतिक स्तरों पर दुनिया के सबसे ताकतवर देश के रूप में बढऩा चाह रहा है। यही कारण है कि सीमाओं पर चीन का अडिय़ल रवैया बढ़ता जा रहा है। वह इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करना चाहता है। मामला चाहे दक्षिणी चीन सागर का हो या फिर पूर्वी चीन सागर के सेनकाकू द्वीप पर जापान के साथ विवाद का चीन अपने रूख से टस से मस नहीं होना चाहता है। भारत के साथ चीन के विवाद को अलग कर नहीं देखना चाहिए। इसे इस महाद्वीप में चीन की वर्चस्व की लड़ाई से जोड़ कर देखने की जरूरत है। अपनी ऊर्जा जरूरतों के मद्देनजर चीन दक्षिणी चीन सागर पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहा है। यहां उसे वियतनाम, जापान और फिलीपिन्स से चुनौती मिल रही है। हाल ही में उसने वियतनाम की दो तेल परियोजनाओं मे शामिल भारतीय कंपनियों को दक्षिणी चीन सागर से दूर रहने की चेतावनी दी थी।  

 भारत के साथ चीन का संबंध खट्ठा ज्यादा और मीठा कम रहा है। इसकी शुरूआत हिंदी  चीनी भाई-भाई के नारों के साथ हुई और १९६२ की लड़ाई के साथ क्लाइमेक्स पर पहुंच गया। इस युद्ध में चीन ने लद्दाख क्षेत्र के १४,५०० वर्गकिमी के भूभाग कब्जा कर लिया था। इसके बाद से इस अक्साई चीन क्षेत्र पर कब्जा जमाए हुए है। बाद में चीन ने अरूणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा पेश कर दिया। गौरतलब है कि अरूणाचल प्रदेश में  एक जल विद्युत परियोजना के लिए एशियाई डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने का चीन ने जमकर विरोध किया था। अरूणाचल प्रदेश को विवादित बताने के लिए वहां के निवासियों को चीन स्टेपल  वीजा जारी करता है। ठीक इसी तरह का आचरण  चीन कश्मीर के साथ भी करता है। वहां के निवासियों को भी चीन स्टेपल वीजा जारी कर विवादित बताने का प्रयास करता है। हांलाकि तिब्बत एक ऐसा क्षेत्र है जो चीन के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। यहां थोड़ा ही सही पर चीन सचेत नजर आता है।  चीन यह आरोप लगाता रहा है कि भारत तिब्बत में चीन विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देता रहता है। हालांकि भारत आधिकारिक रूप से इसे चीन का स्वायत्त क्षेत्र मानता है। फिर भी चीन इस मामले में सशंकित नजर आता है। 

चीन पिछले दशक में भारत की सीमा से सटे तिब्बती क्षेत्र में बुुनियादी सामरिक ढ़ाचों का तेजी से विस्तार किया है। इस क्षेत्र में चीन ने  पांच एयरबेस, दर्जनों हेलीपैड, रेल नेटवर्क और ३०,००० किमी सडक़ों का जाल बिछा दिया है। साथ ही चीन ने इस पूरे क्षेत्र में सामरिक शक्ति के साथ रणनीतिक रूप से अपनी ताकत बढ़ाई है। उसने पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार और बंाग्लादेश को रेल नेटवर्क से जोड़ा है। चीन भारत को पड़ोसी देशों और हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा कर घेरने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका के साथ साझेदारी में परियोजनाएं शुरू कर वह इस, रणनीति पर काम कर रहा है। 

चीन भारत को हर तरफ से नई-नई चुनौतियां देकर हमेशा बैकफुट पर रखना चाहता है। खेल सिद्धांत के चिकन -गेम का  खेल भारत के साथ खेल रहा है। भौगोलिक परिस्थितियों का लाभ लेकर चीन शुरू से ही सीमा क्षेत्र में घुसपैठ करता रहा है। कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं होने के कारण दोनों देश अपने कब्जे वाले क्षेत्र में  वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त करते रहते हैं। भारत की उपस्थिति लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में कम  है। वहां कोई रास्ता नहीं है। हालांकि भारत ने यहां एक एयरबेस बनाया है फिर भी सैनिकों का आवागमन इस क्षेत्र में बाधित रहता है। भारत ने यहां अभी तक कोई बुनियादी ढांचा खड़ा नहीं किया है जिससे कि इस क्षेत्र में हमेशा निगरानी हो सके । चीन बार-बार घुसपैठ करता है परन्तु इस बार योजनाबद्ध तरीके से दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में १९ किमी अंदर तक घुस आया है और वापस जाने का नाम नहीं ले रहा है। कारण- चीन का  यह दावा कि यह क्षेत्र उसका है और उसने कोई घुसपैठ ही नहीं किया है। उसने चाइनीज लैंड पर अपने तम्बू गाड़ रखे हैं, यही चीन का खेल है। दूसरे के भूभाग पर कब्जा कर लो और कहो कि यह मेरा है। इतना ही नहीं चीनी हेलिकॉप्टर भारतीय सीमा में घुस कर घुसपैठियों को तम्बू गाडऩे में मदद भी किया। लेकिन यह चौकाने वाला है कि भारतीय वायुसेना को इसकी भनक तक न लगी और इसकी सूचना आईटीबीपी के अधिकारियों से मिली। दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र काराकोरम दर्रे के पास होने के कारण भू-राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। 

ऐसा लगता है कि भारत चीन से मिली हार को अभी तक भुला नहीं पाया है । चीन के बढ़ते आर्थिक और सामरिक ताकत का मनोवैज्ञानिक दबाव भी भारत महसूस करता प्रतीत हो रहा है। यह आश्चर्य का विषय है कि भारत सैनिक गतिविधियों को चीन से सटे क्षेत्रों में बढ़ा नहीं पाया है। बुनियादी ढ़ांचे का अभाव  और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण  भारतीय सेना अपने हथियारों, रसद और साजो-सामान के साथ इस इलाके में आसानी से नहीं पहुंच पाते हैं। भारत को न सिर्फ दौलत बेग ओल्डी सेक्टर परन्तु रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सभी क्षेत्रों में बुनियादी ढ़ांचों के विकास के साथ-साथ सैनिक गतिविधियों को भी बढ़ाना होगा। इससे भारत को शक्ति संतुलन की स्थिति प्राप्त हो सकती है। यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत को सामरिक और राजनीतिक इच्छा शक्ति को प्रदर्शित करने की जरूरत है। 
 पूरे बजट का १५ से १६ प्रतिशत हिस्सा रक्षा मंत्रालय को जाता है। इस वित्तीय वर्ष में भी २,५३,३४५.९ करोड़ रुपए रक्षा मंत्रालय के लिए प्रस्तावित है। फिर भी सामरिक आधुनिकीकरण नहीं हो पाता है। हम कभी हथियारों का निर्यात नहीं कर पाते हैं और हथियारों की खरीद के लिए दूसरे मुल्कों पर निर्भर होना पड़ता है। रणनीतिक क्षेत्रों में बुनियादी ढ़ाचें तक नहीं है। अक्साई चीन इलाके में चीन ने वर्षों पूर्व राजमार्ग बना लिया है पर भारतीय सैनिकों को आज भी पगड़डिय़ों से होकर गुजरना पड़ता है। 

भारत को चीन की आक्रमकता पर अंकुश लगाना ही होगा। इसके लिए रणनीतिक तरीकों का इस्तेमाल करना ही बेहतर होगा क्योंकि दोनों देश आज युद्ध नहीं चाहते हैं। यहां यह भी बताते चले कि तिब्बत को चीन का हिस्सा मानकर भारत तिब्बत कार्ड को भी खो चुका है। हमें पड़ोसी देशों में चीन की गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है। इसके बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए समग्र रणनीतिक नीति की जरूरत है। 

भारत चीन रिश्ते का दूसरा पहलू आर्थिक संबंध भी है। भारत चीन का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष २००० में २.९२ बिलियन डॉलर था जो कि २०१२ में बढक़र ७० बिलियन डॉलर हो गया और इसे २०१५  तक १०० बिलियन डॉलर होने की सम्भावना है। भारतीय बाजार चीनी मालों से पटा पड़ा है। कोई भी रणनीति बनाने से पहले हमें इस हकीकत को भी समझने की जरूरत है।