मुंबई मेरी जान

पिछले कुछ दिनों से मुंबई की चर्चा जोर पर है। सवाल हो रहे है कि मुंबई किसकी है। मेरा कहना है ,सवाल पूछे ही क्यों जा रहे है। आज जब राहुल गाँधी से लेकर RSS तक सब लोग मुंबई को संपूर्ण राष्ट्र का अंग मानते है। कल वही लोग उत्तर भारतीयों के पीटे जाने पर चुप क्यों थे। वोट बैंक पोलिटिक्स ही इसका कारण है। जब महाराष्ट्र में चुनाव होते है ,तब मराठी राग अलापा जाता है। जब बिहार में ,तब उत्तर भारतीयों का ।
मुंबई ही नहीं संपूर्ण भारत सबों के लिए है। गन्दी राजनीति देश को तोड़ने का काम कर रही है। अपनी रोटी सेंकने के लिए हमारे चूल्हे बुझा दिए जाते है। पेट पर लात मार दिया जाता है। हमें उनकी इस करतूत को समझना होगा , नहीं तो हम चाल मे फँस जायेंगे। अगर किसी को महाराष्ट्र से प्रेम है ,तो वह संपूर्ण प्रदेश के विकास क़ी बात करेगा। न की सिर्फ मुंबई की। विदर्भमें किसानो की आत्महत्या ,गढ़चिरौली का नक्सलवाद ,मराठवाडा का पिछड़ापन,कोंकण का भूमाफिया आदि ऐसे कई कारण है, मुंबई पर चर्चा करने के लिए। मराठी माणूस का भला इन समस्यओं के समाधान में है।
मुंबई वैसे भी किसी एक का नहीं है। कोली समाज ,पुर्तगाल , अंग्रेज ,पारसी,मारवाड़ी गुजराती सबों ने मिल कर मुंबई को मुंबई बनाया है। आज भी मुंबई अम्बानी ,टाटा ,बच्चन हिंदी फिल्म उद्योग ,आदि -आदि के लिए जाना जाता है। मुंबई किसी की बपौती नहीं है। मै भी मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का समर्थन करता हूँ ।