लो, फिर आया ये प्रेम दिवस

Valentine day आया है। प्रेम प्रदर्शन का अनोखा दिवस । सड़कों के किनारे फूल वालों की चाँदी ही चाँदी है। गुलाब के फूल सैकड़ों रुपये में बिक रहे है । गिफ्ट खास कार चोकलेट्स,सोफ्ट टोयस आदि कीबिक्री खूब हो रही है। खैर ,मुझे Valentine day के अर्थशाश्त्र में नहीं जाना है। मै तो बस इतना जानना चाहता हू Valentine day क्यों । मै १४ फरवरी के इतिहास में भी नहीं जाना चाहता हू। सब को पता है ।

क्या प्रेम प्रदर्शन को किसी खास दिवस की आवश्यकता है । और लाख टके का सवाल यह है कि क्या प्रेम को सहीमें किसी खास दिवस और प्रदर्शन कि जरुरत है? प्रेम ,अंतर्मन की नैससर्गिक भावना है, जो स्वयं प्रकट है। इसे किसी सहारे की जरुरत नहीं है। हाँ,जहाँ तक अभिव्यक्ति का सवाल है,तो हम प्रेम को अभिव्यक्त कर सकते है।पर यह एक सुनियोजित तरीका से किसी खास दिवस पर ही हो,व्यवहारिक नहीं लगता । अर्थात, प्रेम जो स्वयं मुक्त है ,को दिवसों की बन्धनों से मुक्ति की जरुरत है ।

वस्तुतः ये सारे दिवस पश्चिमीकरण ,आधुनिकीकरणऔर सास्कृतिक साम्राज्यवाद जैसे सुनीयोजित प्रयासों का हिस्सा है। राधा कृष्ण की इस धरती पर किसी Valentine की जरुरत नहीं है। हद तो तब हो जाती है ,जब एक एक व्यक्ति एक से अधिक लोगो को valentine का प्रस्ताव देते है। मै तो सिर्फ इतना कहना चाहता हू की जिस तरीके से इन दिवसों का संस्थानिकीकरण हो रहा है कही मूल वस्तु(प्रेम ) ही कमजोर न हो जाय । क्योंकि जो दिखाया जाता है वह दिखावा है।